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Friday, June 22, 2012

एक लाजरा न् साजरा मुखडा..!


जगदीश खेबूडकरांची माफी मागून...!
फक्त ठळक शब्द मूळ गाण्यापासून बदलले आहेत...

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एक लाजरा न् साजरा मुखडा, चंद्रावानी खुलला ग
सांजा परसाकडला बसता हा जीव माझा हरला ग ! 

ह्या एकांताचा तुला इशारा कळला ग 
लाज आडवी येती मला की जीव माझा भुलला ग

नको रानी नको लाजू, लाजंमदी नको भिजू  
हितं नको तिथं जाऊ, आडोशाला उबं राहू

का.............? 
बघत्यात ! 

एक लाजरा न् साजरा मुखडा...............

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पोटाला विळखा, घालुन सजना, नका हो कवळुन धरू
का.............?

लुकलुक डोळं, करुन भोळं, बगतंय फुलपाखरू
कसा मिळावा पुन्हा साजनी मोका असला ग...

लाज आडवी येती मला ............. 

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बेजार झाले सोडा सजणा, शिरशिरी आली अंगा
का.............?

मधाचा ठेवा लुटता लुटता, बघतोय चावट भुंगा
मनात राणी तुझ्या हवेचा झोका झुलला ग

लाज आडवी येती मला ............. 

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डोळं रोखुन, थोडं वाकुन, झुकू नका हो फुडं
गटर्गुम गटर्गुम करून कबूतर बघतंय माज्याकडं
लई दिसानं सखे, आज ही भोवळ आली गं...

लाज आडवी येती मला .............
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6 comments:

  1. :) अगदी पो...i mean हृदय पिळवटून टाकणारी पोस्ट... !

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  2. Suraj RayanadeJuly 05, 2012 2:30 PM

    lay bhari.....
    thodich shabd badalun ganyach kay karata yetay he kalat hyattann......

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